Saturday, April 23, 2016

कपिल शर्मा के सफलता की प्रेरणादायक कहानी

कपिल शर्मा के सफलता की प्रेरणादायक कहानी /Kapil Sharma In Hindi

कपिल शर्मा / Kapil Sharma का जन्म पंजाब के अमृतसर में हुआ. उनके पिता पंजाब पुलिस के हेड कांस्टेबल थे और उनकी माता गृहिणी है. कैंसर की बीमारी के चलते उनके पिता की 2004 को सफ्दुर्जुंग अस्पताल, न्यू दिल्ली में मृत्यु हो गयी थी. कपिल अमृतसर के हिंदु कॉलेज में पढ़ते थे.
कपिल शर्मा ने एमएच वन पर हसदे हसंदे रहो कॉमेडी शो में काम किया इसके बाद इन्हें द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज में अपना पहला ब्रेक मिला. ये उन 99 रियलिटी शो में से एक है जिन्हें वे जीत चुके है. 2007 में ये इस शो के विजेता बने जिसने कपिल ने 10 लाख की पुरस्कार राशि जीती.
इसके बाद कपिल शर्मा / Kapil Sharma सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविज़न पर कॉमेडी सर्कस में भाग लिया. कपिल ने इसके सारे छह सीजन जीते. कपिल डांस रियलिटी शो झलक दिखला जा सीजन 6 भी होस्ट कर चुके है और उन्होंने कॉमेडी शो छोटे मिया भी होस्ट किया है. बाद में शर्मा ने उस्तादों के उस्ताद शो में भी हिस्सा लिया था. 2013 में शर्मा ने अपने प्रोडक्शन बैनर K9 प्रोडक्शन के अंतर्गत अपना शो कॉमेडी नाइट्स विथ कपिल लांच किया जो एक बहोत बड़ा हिट साबित हुआ. कॉमेडी नाइट्स विथ कपिल भारत का सबसे प्रसिद्ध कॉमेडी शो है और उस शो में बड़े-बड़े कलाकार ने हाजिरी दी है जैसे – शाहरुख़ खानसलमान खान और भी कई बड़ी हस्तिया.
CNN-IBN इंडियन ऑफ़ द इयर अवार्ड में शर्मा को एंटरटेनर ऑफ़ द इयर अवार्ड 2013 से अमोल पालेकर द्वारा सम्मानित किया गया. लोक सभा चुनाव 2014 में उन्हें दिल्ली चुनाव आयोग के द्वारा दिल्ली का ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया.
शर्मा ने 60 वे फिल्मफेयर अवार्ड को कारन जौहर के साथ को-होस्ट के रूप में होस्ट किया. सेलेब्रिटी क्रिकेट लीग 2014 के चौथे सीजन में वे के प्रेसेंटर थे. ये बैंक चोर नमक यशराज फिल्म्स की फिल्म से अपना बॉलीवुड डेब्यू करने वाले थे लेकिन बाद में उन्होंने ये फिल्म छोड़ दी. 17 अगस्त को उन्हें अमिताभ बच्चन के कौन बनेगा करोडपति के 8वे सीजन के पहले एपिसोड में उन्हें अतिथि के रूप में बुलाया गया था.
कपिल शर्मा एक भारतीय हास्य अभिनेता है. फरवरी 2013 में कपिल शर्मा फ़ोर्ब्स इंडिया पत्रिकाओ में शीर्ष 100 हस्तियो के बिच में चुने गये थे और वह उस सूचि में 93 वे स्थान पर थे. और वहा से सीधे 2014 में वे 33 वे स्थान पर आ गये थे. CNN-IBN ने उन्हें 2013 में मनोरंजन के क्षेत्र में इंडियन और द इयर ख़िताब से नवाजा है. इकोनॉमिक्स टाइम्स ने 2015 में भारत के सबसे प्रसिद्ध और मशहूर हस्तियो की सूचि में भी कपिल शर्मा को शामिल किया हुआ था. भारत के प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान के लिये कपिल शर्मा का नामनिर्देशन भी किया था, जिसे कपिल ने स्वीकार भी किया था. एक साल बाद ही सितम्बर 2015 में स्वच्छ भारत अभियान में उनके योगदान के लिये उन्हें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित भी किया. उन्होंने अब्बास मस्तान की रोमांटिक-कॉमेडी फिल्म किस-किस को प्यार करू से अपने बॉलीवुड करियर की शुरुवात की थी.
कपिल शर्मा / Kapil Sharma कॉमेडी के क्षेत्र में लगातार वे बिना ब्रेक लिए पिछले 8 सालो से काम कर रहे है. वे एक पशु प्रेमी भी है और वे जीवो के साथ मानवीय व्यवहार का समर्थन भी करते है. उन्होंने एक कुत्ते को भी गोद ले रखा है जिसका नाम जंजीर है…. कपिल शर्मा ने काफी कम वक्त में इतनी सक्सेस पाई है, आज हर युवक उनसे प्रेरित हो रहा है. ये कपिल शर्मा की मेहनत और लगन का नतीजा ही है की बिना किसी बेकग्राउंड और गॉड फादर इस चमचमाती बॉलीवुड के दुनिया में उन्होंने अपने खुद के दम पर जीवन में जो चाह हासिल किया. कहते है ना-
अगर किसी चीज को पूरी दिलो-जान से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने के जुरत में लग जाती है.
और भी प्रेरणादायक कहानियाँ जरुर पढ़े :- 
कपिल शर्मा के बारे में और जानने के लिए ये वेबसाइट – http://kapilsharma.org/
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Aaj Ka Vichar in Hindi – आज का विचार

Aaj Ka Vichar In Hindi

Aaj Ka Vichar in Hindi – आज का विचार
1) समस्या को हल करने की तुलना में बहुत से लोग ज्यादा समय और ताकत उस से जूझने में लगा देते है.
2) सुबह की ‘चाय’ और बड़ो की ‘राय’ वक्त पर ही लेते रहना चाहिए…!
3) खुद के लिए पैसा कमाना अच्छी बात है, और उससे किसी और का भी भला हो तो बहुत अच्छी बात है
4) हर रोज नीद से उठाने के बाद आपके पास अगर करने जेसा काम होंगा तो आपका जिंदगी से कभी झगडा नहीं होंगा.
5) मेरे पास पेड़ कटाने के लिए 10 घंटे है, तो उसमे से 7 घंटे मे कुल्हाड़ी को धार लगने में इस्तमाल करुगा.
6) आपके विचार आपके वाक्य तय करते है, आपके वाक्य आपके कृती में बदलते है, आपकी कृती आपकी आदत में बदलती है, आपकी आदते आपका व्यक्तिमत्व तय कराती है, और आपका व्यक्तिमत्व आपका कर्म.
7) नये विचार सुझाना ये दाढ़ी करने जैसा है, अगर ये रोज नहीं हुआ तो आप नालायक हो.
8) जिस चीज का आपको डर लगता है, वही चीज करो, डर हमेशा के लिए ख़तम हो जायेंगा.
9) इस बात की चिंता मत करो की लोग आपके बारे में क्या सोचते है, वो तो इसमे ही व्यस्त हे की आप उनके बारे मै क्या सोचते है.
10) जब दूसरो को बदलना मुश्किल होता है, तब खुद मै बदलाव करना ही अच्छा है.
11) होशियार इन्सान कोई भी काम करने से पहले सोचता हैं, और मुर्ख करने के बाद.
12) हमारी हर एक सोच हमारा भविष्य बनती है.
13) हमारे सपने सच करने का सबसे अच्छा रास्ता – नीद से जाग जाने का.
14) जिस दिन आप खुद पर हस सको, समज जाओ आप सफल होते जा राहे हो.
15) नसीब मतलब क्या ? मेहनत और मोके का मिलाप.

Br Ambedkar Biography In Hindi | डॉ. भीमराव अम्बेडकर जीवनी

पूरा नाम     – भीमराव रामजी अम्बेडकर.
जन्म          – 14  अप्रेल 1891.
जन्मस्थान – महू. (जि. इदूर मध्यप्रदेश).
पिता           – रामजी.
माता          – भीमाबाई.
शिक्षा          -* 1915  में एम. ए. (अर्थशास्त्र). * 1916  में कोलंबिया विश्वविद्यालय में से PHD. * 1921  में मास्टर ऑफ सायन्स. * 1923  में डॉक्टर ऑफ सायन्स.
विवाह         – दो बार, पहला रमाबाई के साथ (1908 में) दूसरा डॉ. सविता कबीर के साथ (1948 में)

Dr. Br Ambedkar Biography In Hindi

भीमराव रामजी आम्बेडकर का जन्म ब्रिटिशो द्वारा केन्द्रीय प्रान्त (अब मध्यप्रदेश में) में स्थापित नगर व सैन्य छावनी मऊ में हुआ था. वे रामजी मालोजी सकपाल जो आर्मी कार्यालय के सूबेदार थे और भीमाबाई की 14 वी व अंतिम संतान थे. उनका परिवार मराठी था और वे अम्बावाड़े नगर जो आधुनिक महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में है, से सम्बंधित था. वे हिंदु महार (दलित) जाती से संपर्क रखते थे, जो अछूत कहे जाते थे और उनके साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था.आंबेडकर के पूर्वज लम्बे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे और उनके पिता, भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे ओए यहाँ काम करते हुए वो सूबेदार के पद तक पहुचे थे. उन्होने अपने बच्चो को स्कूल में पढने और कड़ी महेनत करने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया. स्कूली पढाई में सक्षम होने के बावजूद आम्बेडकर और अन्य अस्पृश्य बच्चो को विद्यालय में अलग बिठाया जाता था और अध्यापको द्वारा न तो ध्यान दिया जाता था, न ही उनकी कोई सहायता की. उनको कक्षा के अन्दर बैठने की अनुमति नहीं थी, साथ ही प्यास लगने पर कोई उची जाती का व्यक्ति उचाई से पानी उनके हातो पर डालता था, क्यू की उनकी पानी और पानी के पात्र को भी स्पर्श करने की अनुमति नहीं थी. लोगो के मुताबिक ऐसा करने से पात्र और पानी दोनों अपवित्र हो जाते थे. आमतौर पर यह काम स्कूल के चपरासी द्वारा किया जाता था जिसकी अनुपस्थिति में बालक आंबेडकर को बिना पानी के ही रहना पड़ता था. बाद में उन्होंने अपनी इस परिस्थिती को “ना चपरासी, ना पानी” से लिखते हुए प्रकाशित किया.
1894 में रामजी सकपाल सेवानिर्वुत्त हो जाने के बाद वे सहपरिवार सातारा चले गये और इसके दो साल बाद, आंबेडकर की माँ की मृत्यु हो गयी. बच्चो की देखभाल उनकी चची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुए की.रामजी सकपाल के केवल तिन बेटे, बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियों मंजुला और तुलासा ही इन कठिन हालातो में जीवीत बाख पाए. अपने भाइयो और बहनों में केवल आंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए ओर इसके बाद बड़े स्कूल में जाने में सफल हुए. अपने एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने पर अम्बावडेकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर आंबेडकर जोड़ लिया जो उनके गाव के नाम “अम्बावाड़े” पर आधारित था.
भीमराव आंबेडकर को आम तौर पर बाबासाहेब के नाम से जाने जाता हे, वे एक भारतीय न्यायशास्त्री, अर्थशास्त्री, राजनेता और सामाजिक सुधारक थे जिन्होंने आधुनिक बुद्धिस्ट आन्दोलनों को प्रेरित किया और सामाजिक अंतर/भेदभाव के विरुद्ध दलितों के साथ अभियान चलाया, स्त्रियों और मजदूरो के हक्को के लिए लड़े. वे स्वतंत्र भारत के पहले विधि शासकीय अधिकारी थे और साथ ही भारत के संविधान निर्माता भी थे.
आंबेडकर एक बहोत होशियार और कुशल विद्यार्थी थे, उन्होंने कोलम्बिया विश्वविद्यालय और लन्दन स्कूल ऑफ़ इकनोमिक से बहोत सारी क़ानूनी डिग्री प्राप्त कर रखी थी और अलग-अलग क्षेत्रो में डॉक्टरेट कर रखा था, उनकी कानून, अर्थशास्त्र और राजनितिक शास्त्र पर अनुसन्धान के कारन उन्हें विद्वान की पदवी दी गयी. उनके प्रारंभिक करियर में वे एक अर्थशास्त्री, प्रोफेसर और वकील थे. बाद में उनका जीवन पूरी तरह से राजनितिक कामो से भर गया, वे भारतीय स्वतंत्रता के कई अभियानों में शामिल हुए, साथ ही उस समय उन्होंमे अपने राजनितिक हक्को और दलितों की सामाजिक आज़ादी, और भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के लिए अपने कई लेख प्रकाशित भी किये, जो बहोत प्रभावशाली साबित हुए.1956 में उन्होंने धर्म परिवर्तन कर के बुद्ध स्वीकारा, और ज्यादा से ज्यादा लोगो को इसकी दीक्षा भी देने लगे.
1990 में, मरणोपरांत आंबेडकर को सम्मान देते हुए, भारत का सबसे बड़ा नागरिकी पुरस्कार, “भारत रत्न” जारी किया. आंबेडकर की म्हणता के बहोत सारे किस्से और उनके भारतीय समाज के चित्रण को हम इतिहास में जाकर देख सकते है.
जरुर पढ़े :-   Dr Br Ambedkar Thoughts In Hindi

एक नजर में बाबासाहेब अम्बेडकर की जानकारी – Dr BR Ambedkar In Hindi

1920 में ‘मूक नायक’ ये अखबार उन्होंने शुरु करके अस्पृश्यों के सामाजिक और राजकीय लढाई को शुरुवात की.
1920  में कोल्हापुर संस्थान में के माणगाव इस गाव को हुये अस्पृश्यता निवारण परिषद में उन्होंने हिस्सा लिया.
1924 में उन्होंने ‘बहिष्कृत हितकारनी सभा’ की स्थापना की, दलित समाज में जागृत करना यह इस संघटना का उद्देश था.
1927 में ‘बहिष्कृत भारत’  नामका पाक्षिक शुरु किया.
1927  में महाड यहापर स्वादिष्ट पानी का सत्याग्रह करके यहाँ की झील अस्प्रुश्योको पिने के पानी के लिए खुली कर दी.
1927  में जातिव्यवस्था को मान्यता देने वाले ‘मनुस्मृती’ का उन्होंने दहन किया.
1928 में गव्हर्नमेंट लॉ कॉलेज में उन्होंने प्राध्यापक का काम किया.
1930 में नाशिक यहा के ‘कालाराम मंदिर’ में अस्पृश्योको प्रवेश देने का उन्होंने सत्याग्रह किया.
1930 से 1932 इस समय इ इंग्लड यहा हुये गोलमेज परिषद् में वो अस्पृश्यों के प्रतिनिधि बनकर उपस्थिति रहे. उस जगह उन्होंने अस्पृश्यों के लिये स्वतंत्र मतदार संघ की मांग की. 1932 में इग्लंड के पंतप्रधान रॅम्स मॅक्ड़ोनाल्ड इन्होंने ‘जातीय निर्णय’ जाहिर करके अम्बेडकर की उपरवाली मांग मान ली.
जातीय निर्णय के लिये महात्मा गांधी का विरोध था. स्वतंत्र मतदार संघ की निर्मिती के कारण अस्पृश्य समाज बाकी के हिंदु समाज से दुर जायेगा ऐसा उन्हें लगता था. उस कारण जातीय निवडा के तरतुद के विरोध में गांधीजी ने येरवड़ा (पुणे) जेल में प्रनांतिक उपोषण आरंभ किया. उसके अनुसार महात्मा गांधी और डॉ. अम्बेडकर बिच में 25 डिसंबर 1932 को एक करार हुवा. ये करार ‘पुणे करार’ इस नाम से जाना है. इस करारान्वये डॉ. अम्बेडकर ने स्वतंत्र मतदार संघ की जिद् छोडी. और अस्पृश्यों के लिये कंपनी लॉ में आरक्षित सीटे होनी चाहिये, ऐसा आम पक्षियों माना गया.
1935  में डॉ.अम्बेडकर को मुंबई के गव्हर्नमेंट लॉ कॉलेज के अध्यापक के रूप में चुना गया.
1936 में सामाजिक सुधरना के लिये राजकीय आधार होना चाहिये इसलिये उन्होंने ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ स्थापन कि.
1942  में ‘शेड्युल्ट कास्ट फेडरेशन’ इस नाम के पक्ष की स्थापना की.
1942 से 1946  इस वक्त में उन्होंने गव्हर्नर जनरल की कार्यकारी मंडल ‘श्रम मंत्री’ बनकर कार्य किया.
1946  में ‘पीपल्स एज्युकेशन सोसायटी’ इस संस्थाकी स्थापना की.
डॉ. अम्बेडकर ने घटना मसौदा समिति के अध्यक्ष बनकर काम किया. उन्होंने बहोत मेहनत पूर्वक भारतीय राज्य घटने का मसौदा तयार किया. और इसके कारण भारतीय राज्य घटना बनाने में बड़ा योगदान दिया. इसलिये ‘भारतीय राज्य घटना के शिल्पकार’ इस शब्द में उनका सही गौरव किया जाता है. *स्वातंत्र के बाद के पहले मंत्री मंडल में उन्होंने कानून मंत्री बनकर काम किया.
1956 में नागपूर के एतिहासिक कार्यक्रम में अपने 2 लाख अनुयायियों के साथ उन्होंने बौध्द धर्म की दीक्षा ली.
Br Ambedkar Book’s – किताबे :-
* हु वेअर शुद्राज?,
* दि अनरचेबल्स,
* बुध्द अॅड हिज धम्म,
* दि प्रब्लेंम ऑफ रूपी,
* थॉटस ऑन पाकिस्तान आदी.
Br Ambedkar Awards  – पुरस्कार :-   1990  में ‘बाबा साहेब’ को देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया.
Br Ambedkar Death – मृत्यु :- 6 दिसंबर 1956 को लगभग 63 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया.
एक महापुरुष, दलितों के शुभचिंतक तथा योग्य संविधान निर्माता के रूप में डॉ. अम्बेडकर को सदा आदर से स्मरण किया जायेगा.
भीमराव रामजी आंबेडकर जो विश्व विख्यात है. जिन्होंने अपना पूरा जीवन बहुजनो को उनका अधिकार दिलाने में व्यतीत किया. उनकी इस जीवनी को देखते हुए निच्छित ही यह लाइन उनपर सम्पूर्ण रूप से सही साबित होगी—
“जीवन लम्बा होने की बजाये महान होना चाहिये”. जिस समय सामाजिक स्तर पर बहुजनो को अछूत मानकर उनका अपमान किया जाता था, उस समय आंबेडकर ने उन्हें वो हर हक्क दिलाया जो एक समुदाय को मिलना चाहिये. हमें भी अपने आसपास के लोगो में भेदभाव ना करते हुए सभी को एक समान मानना चाहिये. हर एक इंसान का जीवन स्वतंत्र है, हमें समाज का विकास करने से पहले खुद का विकास करना चाहिये. क्योकि अगर देश का हर एक व्यक्ति एक स्वयं का विकास करने लगे तो, हमारा समाज अपने आप ही प्रगतिशील हो जायेंगा.
हमें जीवन में किसी एक धर्म को अपनाने की बजाये, किसी ऐसे धर्म को अपनाना चाहिये जो स्वतंत्रता, समानता और भाई-चारा सिखाये.

मज़ेदार (पागल) सुविचार | Very Funny Quotes In Hindi

जरुरी नहीं की हर बात (Quotes) महात्मा गांधी और अल्बर्ट आइंस्टीन ने ही कही हो… यहाँपर कुछ मज़ेदार सुविचार –Very Funny Quotes In Hindi दिये है.. जो आपको हँसा-हँसा कर पागल कर देंगे… आप भी पढ़िये पसंद आये तो दोस्तों को भी share कीजिये..

मज़ेदार (पागल) सुविचार – Very Funny Quotes In Hindi

अगर आप मंजिल चाहते हो तो होसला बुलंद रखो, अगर प्यार चाहते हो तो एतबार साथ रखो, और अगर हसना चाहते हो तो दांत साफ रखो.! – unknown dentist (दातों का डॉक्टर)
अच्छे दोस्त चाहे कितनी भी बार रूठ जाए उन्हें मना लीजिये, क्योकि वो बेवकूफ आपके सारे राज जानते है… –एक दुखी दोस्त.
अगर सुबह जल्दी उठाने से ताकत और धन बढ़ता तो हार पेपरवाला सबसे तंदरुस्त और अमीर होता… –
“लड़कियां गैलरी से नहीं salary से पटती है.” –  unknown व्यापारी
अगर अपने अपनी शर्ट का पहला बटन गलत लगाया है तो निसंदेह बाकि बटन भी गलत लगेंगे..” – unknown टेलर..
अगर आपकी राह में छोटे छोटे पत्थर आये तो समझ लेना !…………….. रोड का काम चाल रहा है…  – unknown ठेकेदार
जिंदगी में सिर्फ पाना ही सबकुछ नहीं होता!……………….. उसके साथ नट-बोल्ट भी चाहिए…  – unknown मिस्त्री
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें……………………..3 बजे तक रिपोर्ट दूंगा…  – unknown पैथालोजी
यहाँ खुदा है, वहा खुदा है, अपने आस पास भी खुदा है……………………….. जहा खुदा नहीं वहा कल खुदेगा..  – unknown नगरपालिका

अच्छी आदतों पर अनमोल विचार | Good Habits Quotes In Hindi

अच्छी आदतों पर अनमोल विचार / Good Habits Quotes In Hindi

1. प्रेरणा आपको काम को शुरू करने में सहायक होती है, जबकि आदत आपको काम को करते रहने में सहायक होती है. – जिम र्युन
2. आदतों को सुधारने के अलावा आपको और कुछ सुधारने की जरुरत नही है.- मार्क ट्वेन
3. जीवन में जब भी हमारा दुःखो से सामना होता है, तो हम 2 तरह की प्रतिक्रिया करते है – या तो हम आशा खो देते है और खुद ही अपना विनाश करने लगते है या आंतरिक शक्ति को धुंडने के लिये चुनौतियों को अपनाते है. बुद्धा द्वारा दिए गए ज्ञान के लिये में शुक्रगुजार हु, उन्ही की वजह से मैंने दूसरा रास्ता चुना है. –  दलाई लामा
4. आपके जीवन की कुल कीमत को आपकी बुरी आदतों में से अच्छी आदतों को घटाकर ही पता किया जा सकता है. –बेंजामिन फ्रेंक्लिन
5. इस दुनिया में बारे में यदि कोई अच्छी और निश्चित बात कही जाये तो वह यह होगी की बुरी आदतों को छोड़ने से आसान अच्छी आदतों को छोड़ना होता है. – सॉमरसेट मौघम
6. आदतों की श्रुंखला महसूस करने के लिए बहोत कमजोर और ओड़ने के लिए काफी मजबूत होती है. – सामुएल जॉनसन
7. हम वही बनते है जो हम बार-बार करते है. – सीन कोवे
8. अच्छी आदतों को हमें कट्टरता के साथ अपनाना चाहिए. -जॉन इरविंग
9. एक बुरी आदत कभी भी चमत्कारीक रूप से गायब नही होती. आप उसे अपनेआप में ही परियोजित कर सकते हो.- अबीगेल वन बुरेन
10.इंसान ने जीवन में दुसरे भाग में कुछ नही किया फिर भी वह दिखाई देती है, लेकिन आदते इंसान को जीवन में पहले भाग में ही लगानी पड़ती है.
11. इंसान का स्वभाव एक जैसा ही होता है, उसकी आदते उसे अलग बनाती है – कन्फ़्यूशियस / Confucius

बहुत अच्छे विचार हिंदी में | Very Good Thoughts In Hindi

बहुत अच्छे विचार हिंदी में – Very Good Thoughts In Hindi

1. “सफलता पाने का सुनहरा अवसर इंसान में ही होता है न की किसी काम में”
2. “जब मै जीवन के अंतिम क्षणों में परमात्मा के सामने खड़ा रहूगा, तब मै चाहता हु की मेरे पास टैलेंट की एक बूंद भी ना हो, ताकि मै परमात्मा से कह सकू की, तुमने जो दिया उन सब का मैंने उपयोग कर लिया”
3. “एक चिड़िया की तरफ देखो, जिसे ये भी नहीं पता होता है की अगले ही पल वह क्या करने वाली होगी. तो क्यू ना हम पूरा जीवन एक-एक पल की तरह जिये”
4. “नसीब/तक़दीर/भाग्य/किस्मत महेनत का ही एक हिस्सा है. जितनी ज्यादा आप महेनत करोगे उतने ही ज्यादा आप नसीबवाले बनते जाओगे.”
5. “आपको अपना सबसे बड़ा दुश्मन और सच्चा मित्र आपके अंदर ही मिलेगा”
6. “साहस इंसान का पहला गुण है, क्योकि इंसान के बाकी सारे गुण साहस ही निश्चित करता है”
7. “अपने हर एक दिन को ऐसे जिये जैसे अभी-अभी आपका जीवन शुरू हुआ है”
8. “एक सफल व्यक्ति और दुसरे व्यक्ति में फरक शक्ति और बुद्धि की कमी होना नहीं है बल्कि इच्छा की कमी होना है”
9. “अपनी असफलता के बारे में चिंतित रहने की बजाये उस मौके के बारे में चिंतित रहिये जिसे कोशिश किये बिना ही आपने खो दिया”
10. “जीवन के दो ही नियम है, 1. कभी ना छोड़े/ कभी हार ना माने 2. नियम नंबर 1 कभी ना भूले”
11. “वहा कभी मत जाओ जहा आपका रास्ता आपको ले जाये, बल्कि वहा जाओ जहा कोई रास्ता न हो और आप अपने लिए रास्ता बनाओ”
12. “बहोत से लोग असफलता से तंग आकर अपने काम को बिच में ही छोड़ देते है, लेकिन तब वे ये नहीं जानते के उस समय वे सफलता के बहोत करीब होते है”
13. “कोई भी श्रेष्ट काम पहले असंभव ही होता है”
14. “जीवन का पहला नियम, वही करे जो आपको आनंद दे”
15. “केवल लक्ष्य रखना पर्याप्त नहीं, उसके लिए प्रयत करना बहोत जरुरी है”
16. “चुनौतिया वे होती है जो जीवन को मजेदार बनाती है और जीवन को सार्थक बनाती है”
17. “रूकावट अक्सर कुछ पाने का प्रारंभिक प्रयास होती है”
18. “मै अपनी परिस्थितियों का परिणाम नहीं बल्कि अपने निर्णयों का परिणाम हु”
19. “दिमाग सबकुछ है. आप जो सोचते हो वही बनते हो”
20. “मै उन लोगो का आभारी हु जिन्होंने मुझे ना कहा. क्यू की उन्ही की वजह से मैंने खुद उसे करना शुरू किया”
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स्वामी विवेकानंद की प्रेरक जीवनी | Swami Vivekananda In Hindi


पूरा नाम   – नरेंद्रनाथ विश्वनाथ दत्त.
जन्म           – 12 जनवरी 1863.
जन्मस्थान – कलकत्ता (पं. बंगाल)
पिता           – विश्वनाथ दत्त.
माता          – भुवनेश्वरी देवी.
शिक्षा         – 1884 मे बी. ए. परीक्षा उत्तीर्ण.
विवाह        – विवाह नहीं हुवा. ब्राम्हो समाज का

Swami Vivekananda Biography In Hindi

स्वामी विवेकानंद / Swami Vivekananda जन्मनाम नरेंद्र नाथ दत्त भारतीय हिंदु सन्यासी और 19 वी शताब्दी के संत रामकृष्ण के मुख्य शिष्य थे. भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण दर्शन विदेशो में स्वामी विवेकानंद की वक्तृता के कारण ही पहोचा. भारत में हिंदु धर्म को बढ़ाने में उनकी मुख्य भूमिका रही और भारत को औपनिवेशक बनाने में उनका मुख्य सहयोग रहा. विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी भारत में सफलता पूर्वक चल रहा है. उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुवात “मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनों” के साथ करने के लिए जाना जाता है. जो शिकागो विश्व धर्म सम्मलेन में उन्होंने ने हिंदु धर्म की पहचान कराते हुए कहे थे.
उनका जन्म कलकत्ता के बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था. स्वामीजी का ध्यान बचपन से ही आध्यात्मिकता की और था. उनके गुरु रामकृष्ण का उनपर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा, जिनसे उन्होंने जीवन जीने का सही उद्देश जाना, स्वयम की आत्मा को जाना और भगवान की सही परिभाषा को जानकर उनकी सेवा की और सतत अपने दिमाग को को भगवान के ध्यान में लगाये रखा. रामकृष्ण की मृत्यु के पश्च्यात, विवेकानंद ने विस्तृत रूप से भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की और ब्रिटिश कालीन भारत में लोगो की परिस्थितियों को जाना, उसे समझा. बाद में उन्होंने यूनाइटेड स्टेट की यात्रा जहा उन्होंने 1893 में विश्व धर्म सम्मलेन में भारतीयों के हिंदु धर्म का प्रतिनिधित्व किया. विवेकानंद ने यूरोप, इंग्लैंड और यूनाइटेड स्टेट में हिंदु शास्त्र की 100 से भी अधिक सामाजिक और वैयक्तिक क्लासेस ली और भाषण भी दिए. भारत में विवेकानंद एक देशभक्त संत के नाम से जाने जाते है और उनका जन्मदिन राष्ट्रिय युवा दिन के रूप में मनाया जाता है.

प्रारंभिक जीवन, जन्म और बचपन – Swami Vivekananda Life History

विवेकानंद ( Swami Vivekananda ) का जन्म नरेन्द्रनाथ दत्ता (नरेंद्र, नरेन्) के नाम से 12 जनवरी 1863 को मकर संक्रांति के समय उनके पैतृक घर कलकत्ता के गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट में हुआ, जो ब्रिटिशकालीन भारत की राजधानी थी. उनका परिवार एक पारंपरिक कायस्थ परिवार था, विवेकानंद के 9 भाई-बहन थे. उनके पिता, विश्वनाथ दत्ता, कलकत्ता हाई कोर्ट के वकील थे. दुर्गाचरण दत्ता जो नरेन्द्र के दादा थे, वे संस्कृत और पारसी के विद्वान थे जिन्होंने 25 साल की उम्र में अपना परिवार और घर छोड़कर एक सन्यासी का जीवन स्वीकार कर लिया था. उनकी माता, भुवनेश्वरी देवी एक देवभक्त गृहिणी थी. स्वामीजी के माता और पिता के अच्छे संस्कारो और अच्छी परवरिश के कारण स्वामीजी के जीवन को एक अच्छा आकार और एक उच्चकोटि की सोच मिली.
युवा दिनों से ही उनमे आध्यात्मिकता के क्षेत्र में रूचि थी, वे हमेशा भगवान की तस्वीरों जैसे शिव, राम और सीता के सामने ध्यान लगाकर साधना करते थे. साधुओ और सन्यासियों की बाते उन्हें हमेशा प्रेरित करती रही. नरेंद्र बचपन से ही बहोत शरारती और कुशल बालक थे, उनके माता पिता को कई बार उन्हें सँभालने और समझने में परेशानी होती थी. उनकी माता हमेशा कहती थी की, “मैंने शिवजी से एक पुत्र की प्रार्थना की थी, और उन्होंने तो मुझे एक शैतान ही दे दिया”.

शिक्षा – Swami Vivekananda Education

1871 में, 8 साल की आयु में, नरेंद्र (Swami Vivekananda) को इश्वर चन्द्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूट में डाला गया, 1877 में जब उनका परिवार रायपुर स्थापित हुआ तब तक नरेंद्र ने उस स्कूल से शिक्षा ग्रहण की. 1879 में, उनके परिवार के कलकत्ता वापिस आ जाने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा में फर्स्ट डिवीज़न लाने वाले वे पहले विद्यार्थी बने. वे विभिन्न विषयो जैसे दर्शन शास्त्र, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञानं, कला और साहित्य के उत्सुक पाठक थे.हिंदु धर्मग्रंथो में भी उनकी बहोत रूचि थी जैसे वेद, उपनिषद, भगवत गीता, रामायण, महाभारत और पुराण. नरेंद्र भारतीय पारंपरिक संगीत में निपुण थे, और हमेशा शारीरिक योग, खेल और सभी गतिविधियों में सहभागी होते थे.
नरेंद्र ने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी जीवन और यूरोपियन इतिहास की भी पढाई जनरल असेंबली इंस्टिट्यूट से कर रखी थी. 1881 में, उन्होंने ललित कला की परीक्षा पास की, और 1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी की. नरेंद्र ने David Hume, Immanuel Kant, Johann Gottlieb Fichte, Baruch Spinoza, Georg W.F. Hegel, Arthur Schopenhauer, Auguste Comte, John Stuart Mill और Charles Darwin के कामो का भी अभ्यास कर रखा था. वे Herbert Spencer के विकास सिद्धांत से मन्त्र मुग्ध हो गये थे और उन्ही के समान वे बनना चाहते थे, उन्होंने Spencer की शिक्षा किताब (1861) को बंगाली में भी परिभाषित किया. जब वे पश्चिमी दर्शन शास्त्रियों का अभ्यास कर रहे थे तब उन्होंने संस्कृत ग्रंथो और बंगाली साहित्यों को भी पढ़ा. William Hastie (जनरल असेंबली संस्था के अध्यक्ष) ने ये लिखा की, “नरेंद्र सच में बहोत होशियार है, मैंने कई यात्राये की बहोत दूर तक गया लेकिन मै और जर्मन विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र के विद्यार्थी भी कभी नरेंद्र के दिमाग और कुशलता के आगे नहीं जा सके”. कुछ लोग नरेंद्र को श्रुतिधरा (भयंकर स्मरण शक्ति वाला व्यक्ति) कहकर बुलाते थे.
रामकृष्ण के साथ – Swami Vivekananda Teacher Ramakrushna
1881 में नरेंद्र पहली बार रामकृष्ण से मिले, जिन्होंने नरेंद्र के पिता की मृत्यु पश्च्यात मुख्य रूप से नरेंद्र पर आध्यात्मिक प्रकाश डाला.
जब William Hastie जनरल असेंबली संस्था में William Wordsworth की कविता “पर्यटन” पर भाषण दे रहे थे, तब नरेंद्र ने अपने आप को रामकृष्ण से परिचित करवाया था. जब वे कविता के एक शब्द “Trance” का मतलब समझा रहे थे, तब उन्होंने अपने विद्यार्थियों से कहा की वे इसका मतलब जानने के लिए दक्षिणेश्वर में स्थित रामकृष्ण से मिले. उनकी इस बात ने कई विद्यार्थियों को रामकृष्ण से मिलने प्रेरित किया, जिसमे नरेंद्र भी शामिल थे.
वे व्यक्तिगत रूप से नवम्बर 1881 में मिले, लेकिन नरेंद्र उसे अपनी रामकृष्ण के साथ पहली मुलाकात नहीं मानते, और ना ही कभी किसी ने उस मुलाकात को नरेंद्र और रामकृष्ण की पहली मुलाकात के रूप में देखा. उस समय नरेंद्र अपनी आने वाली F.A.(ललित कला) परीक्षा की तयारी कर रहे थे. जब रामकृष्ण को सुरेन्द्र नाथ मित्र के घर अपना भाषण देने जाना था, तब उन्होंने नरेंद्र को अपने साथ ही रखा. परांजपे के अनुसार, ”उस मुलाकात में रामकृष्ण ने युवा नरेंद्र को कुछ गाने के लिए कहा था. और उनके गाने की कला से मोहित होकर उन्होंने नरेंद्र को अपने साथ दक्षिणेश्वर चलने कहा.
1881 के अंत और 1882 में प्रारंभ में, नरेंद्र अपने दो मित्रो के साथ दक्षिणेश्वर गये और वह वे रामकृष्ण से मिले. उनकी यह मुलाकात उनके जीवन का सबसे बड़ा टर्निंग-पॉइंट बना. उन्होंने जल्द ही रामकृष्ण को अपने गुरु के रूप में स्वीकार नही किया, और ना ही उनके विचारो के विरुद्ध कभी गये. वे तो बस उनके चरित्र से प्रभावित थे इसीलिए जल्दी से दक्षिणेश्वर चले गये. उन्होंने जल्द ही रामकृष्ण के परम आनंद और स्वप्न को ”कल्पनाशक्ति की मनगढ़त बातो” और “मतिभ्रम” के रूप में देखा. ब्रह्म समाज के सदस्य के रूप में, वे मूर्ति पूजा, बहुदेववाद और रामकृष्ण की काली देवी के पूजा के विरुद्ध थे. उन्होंने अद्वैत वेदांत के “पूर्णतया समान समझना” को इश्वर निंदा और पागलपंती समझते हुए अस्वीकार किया और उनका उपहास भी उड़ाया. नरेंद्र ने रामकृष्ण की परीक्षा भी ली, जिन्होंने (रामकृष्ण) उस विवाद को धैर्यपूर्वक सहते हुए कहा, ”सभी दृष्टिकोणों से सत्य जानने का प्रयास करे”.
नरेंद्र के पिता की 1884 में अचानक मृत्यु हो गयी और परिवार दिवालिया बन गया था, साहूकार दिए हुए कर्जे को वापिस करने की मांग कर रहे थे, और उनके रिश्तेदारों ने भी उनके पूर्वजो के घर से उनके अधिकारों को हटा दिया था. नरेंद्र अपने परिवार के लिए कुछ अच्छा करना चाहते थे, वे अपने महाविद्यालय के सबसे गरीब विद्यार्थी बन चुके थे. असफलता पूर्वक वे कोई काम ढूंडने में लग गये और भगवान के अस्तित्व का प्रश्न उनके सामने निर्मित हुआ, जहा रामकृष्ण के पास उन्हें तसल्ली मिली और उन्होंने दक्षिणेश्वर जाना बढ़ा दिया.
एक दिन नरेंद्र ने रामकृष्ण से उनके परिवार के आर्थिक भलाई के लिए काली माता से प्रार्थना करने कहा. और रामकृष्ण की सलाह से वे तिन बार मंदिर गये, लेकिन वे हर बार उन्हें जिसकी जरुरत है वो मांगने में असफल हुए और उन्होंने खुद को सच्चाई के मार्ग पर ले जाने और लोगो की भलाई करने की प्रार्थना की. उस समय पहल;ई बार नरेंद्र ने भगवान् की अनुभूति की थी और उसी समय से नरेंद्र ने रामकृष्ण को अपना गुरु मान लिया था.
1885 में, रामकृष्ण को गले का कैंसर हुआ, और इस वजह से उन्हें कलकत्ता जाना पड़ा और बाद में कोस्सिपोरे गार्डन जाना पड़ा. नरेंद्र और उनके अन्य साथियों ने रामकृष्ण के अंतिम दिनों में उनकी सेवा की, और साथ ही नरेंद्र की आध्यात्मिक शिक्षा भी शुरू थी. कोस्सिपोरे में नरेंद्र ने निर्विकल्प समाधी का अनुभव लिया. नरेंद्र और उनके अन्य शिष्यों ने रामकृष्ण से भगवा पोशाक लिया, तपस्वी के समान उनकी आज्ञा का पालन करते रहे. रामकृष्ण ने अपने अंतिम दिनों में उन्हें सिखाया की मनुष्य की सेवा करना ही भगवान की सबसे बड़ी पूजा है. रामकृष्ण ने नरेंद्र को अपने मठवासियो का ध्यान रखने कहा, और कहा की वे नरेंद्र को एक गुरु की तरह देखना चाहते है. और रामकृष्ण 16 अगस्त 1886 को कोस्सिपोरे में सुबह के समय भगवान को प्राप्त हुए.
मृत्यु – Swami Vivekananda Death
4 जुलाई 1902 (उनकी मृत्यु का दिन) को विवेकानंद सुबह जल्दी उठे, और बेलूर मठ के पूजा घर में पूजा करने गये और बाद में 3 घंटो तक योग भी किया. उन्होंने छात्रो को शुक्ल-यजुर-वेद, संस्कृत और योग साधना के विषय में पढाया, बाद में अपने सहशिष्यों के साथ चर्चा की और रामकृष्ण मठ में वैदिक महाविद्यालय बनाने पर विचार विमर्श किये. 7 P.M. को विवेकानंद अपने रूम में गये, और अपने शिष्य को शांति भंग करने के लिए मन किया, और 9 P.M को योगा करते समय उनकी मृत्यु हो गयी. उनके शिष्यों के अनुसार, उनकी मृत्यु का कारण उनके दिमाग में रक्तवाहिनी में दरार आने के कारन उन्हें महासमाधि प्राप्त होना है. उनके शिष्यों के अनुसार उनकी महासमाधि का कारन ब्रह्मरंधरा (योगा का एक प्रकार) था. उन्होंने अपनी भविष्यवाणी को सही साबित किया की वे 40 साल से ज्यादा नहीं जियेंगे. बेलूर की गंगा नदी में उनके शव को चन्दन की लकडियो से अग्नि दी गयी.
एक नजर में स्वामी विवेकानंद की जानकारी  – Swami Vivekananda Information :
1) कॉलेज में शिक्षा लेते समय वो ब्राम्हो समाज की तरफ आसक्त हुये थे. ब्राम्हो समाज के प्रभाव से वो मूर्तिपूजा और नास्तिकवाद इसके विरोध में थे. पर आगे 1882 में उनकी रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात हुई. ये घटना विवेकानंद के जीवन को पलटकर रखने वाली साबित हुयी. योग साधना के मार्ग से मोक्ष प्राप्ति की जा सकती है, ऐसा विश्वास रामकृष्ण परमहंस इनका था. उनके इस विचार ने विवेकानंद पर बहोत बड़ा प्रभाव डाला. और वो रामकृष्ण के शिष्य बन गये.
2) 1886 में रामकुष्ण परमहंस का देहवसान हुवा.
3) 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में धर्म की विश्व परिषद थी. इस परिषद् को उपस्थित रहकर स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म की साईड बहोत प्रभाव से रखी. अपने भाषण की शुरुवात ‘प्रिय-भाई-बहन’ ऐसा करके उन्होंने अपनी बड़ी शैली में हिंदू धर्म की श्रेष्ठता और महानता दिखाई.
4) स्वामी विवेकानंद के प्रभावी व्यक्तिमत्व के कारण और उनकी विव्दत्ता के कारण अमेरिका के बहोत लोग उनको चाहने लगे. उनके चाहने वालो ने अमेरिका में जगह जगह ऊनके व्याख्यान किये. विवेकानंद 2 साल अमेरिका में रहे. उन दो सालो में उन्होंने हिंदू धर्म का विश्वबंधुत्व का महान संदेश वहा के लोगों तक पहुचाया. उसके बाद स्वामी विवेकानंद इग्लंड गये. वहा की मार्गारेट नोबेल उनकी शिष्या बनी. आगे वो बहन निवेदीता के नाम से प्रसिध्द हुई.
5) 1897  में उन्होंने ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की. उसके साथ ही दुनिया में जगह जगह रामकृष्ण मिशन की शाखाये स्थापना की. दुनिया के सभी धर्म सत्य है और वो एकही ध्येय की तरफ जाने के अलग अलग रास्ते है. ऐसा रामकृष्ण मिशन की शिक्षा थी.
6) रामकृष्ण मिशन ने धर्म के साथ-साथ सामाजिक सुधार लानेपर विशेष प्रयत्न किये. इसके अलावा मिशन की तरफ से जगह-जगह अनाथाश्रम, अस्पताल, छात्रावास की स्थापना की गई.
7) अंधश्रध्दा, कर्मकांड और आत्यंतिक ग्रंथ प्रामान्य छोड़ो और  विवेक बुद्धिसे धर्म का अभ्यास करो. इन्सान की सेवा यही सच्चा धर्म है. ऐसी शिक्षा उन्होंने भारतीयों को दी. उन्होंने जाती व्यवस्था पर हल्ला चढाया. उन्होंने मानवतावाद और विश्वबंधुत्व इस तत्व का पुरस्कार किया. हिंदू धर्म और संस्कृति इनका महत्व विवेकानंद ने इस दुनिया को समझाया.
विशेषता  :-   स्वामी विवेकानंद का 12 जनवरी ये जन्मदिन ‘युवादीन’ रूप में मनाया जाता हैं.
मृत्यु  :-  4 जुलाई 1902  को स्वामी विवेकानंद दुनिया छोड़कर चले गये.
एक युवा संन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेशों में बिखेरनें वाले विवेकानंद साहित्य, दर्शन और इतिहास के प्रकाण्ड विव्दान थे. स्वामी विवेकानंद ने ‘योग’, ‘राजयोग’ तथा ‘ज्ञानयोग’ जैसे ग्रंथों की रचना करके युवा जगत को एक नई राह दिखाई है जिसका प्रभाव जनमानस पर युगों-युगों तक छाया रहेगा. कन्याकुमारी में निर्मित उनका स्मारक आज भी उनकी महानता की कहानी कर रहा है.
श्री रामकृष्ण परमहंस से प्रभावित होकर वे आस्तिकता की ओर उन्मुख हुए थे और उन्होंने सारे भारत में घूम-घूम कर ज्ञान की ज्योत जलानी शुरु कर दी.
“उठो, जागो और तब तक रुको नहीं
जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये !!”
                         स्वामी विवेकानंद द्वारा कहे इस वाक्य ने उन्हें विश्व विख्यात बना दिया था. और यही वाक्य आज कई लोगो के जीवन का आधार भी बन चूका है. इसमें कोई शक नहीं की स्वामीजी आज भी अधिकांश युवाओ के आदर्श व्यक्ति है. उनकी हमेशा से ये सोच रही है की आज का युवक को शारीरिक प्रगति से ज्यादा आंतरिक प्रगति करने की जरुरत है. आज के युवाओ को अलग-अलग दिशा में भटकने की बजाये एक ही दिशा में ध्यान केन्द्रित करना चाहिये. और अंत तक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करते रहना चाहिये. युवाओ को अपने प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करना चाहिये.